सूर्यकांत त्रिपाठी निराला
२१ फरवरी १८९६ को पश्चिमी बंगाल के मेदिनीपुर जिले के महिषादल नामक देशी राज्य में।
मूल निवास :
उत्तर प्रदेश के उन्नाव ज़िले का गढ़कोला नामक गांव।
शिक्षा :
हाई स्कूल तक हिन्दी संस्कृत बंगला व अंग्रेज़ी का स्वतंत्र अध्ययन।
कार्यक्षेत्र :
१९१८ से १९२२ तक महिषादल राज्य की सेवा की। उसके बाद से संपादन, स्वतंत्र लेखन और अनुवाद कार्य। १९२२-२३ में समन्वय (कलकत्ता) का संपादन। १९२३ के अगस्त से मतवाला के मंडल में। इसके बाद लखनऊ में गंगा पुस्तक माला कार्यालय और वहां से निकलने वाली मासिक पत्रिका सुधा से १९३५ के मध्य तक संबद्ध रहे। १९४२ से मृत्यु पर्यन्त इलाहाबाद में रह कर स्वतंत्र लेखन और अनुवाद कार्य।
वे प्रसाद पंत और महादेवी के साथ हिन्दी साहित्य में छायावाद के एक प्रमुख स्तंभ माने जाते हैं। उन्होंने कहानियाँ उपन्यास और निबंध भी लिखे हैं किन्तु उनकी ख्याति विशेषरूप से कविता के कारण ही है।
१५ अक्तूबर १९६१ को इलाहाबाद में उनका निधन हुआ।
प्रमुख कृतियाँ :
काव्यसंग्रह : परिमल, गीतिका, द्वितीय अनामिका, तुलसीदास, कुकुरमुत्ता, अणिमा, बेला, नए पत्ते, अर्चना, आराधना, गीत गुंज, सांध्य काकली।
उपन्यास : अप्सरा, अलका, प्रभावती, निरूपमा, कुल्ली भाट, बिल्लेसुर बकरिहा।
कहानी संग्रह : लिली, चतुरी चमार।
निबंध : रवींद्र कविता कानन, प्रबंध पद्म, प्रबंध प्रतिमा, चाबुक, चयन, संग्रह।
पुराण कथा : महाभारत
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