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Wednesday, 6 July 2011

The Legend of Urdu Poetry

नक़्श फ़रयादी है किसकी शोख़ी-ए-तहरीर का
काग़ज़ी  हे  पैरहन,  हर  पेकर-ए-तसविर  का
तशरीह: उमूमन दीवान, ख़ुदा के हमद से शुरू होते हैं। ग़ालिब इस रास्ते से हट के चला है। फिर भी वो ख़ुदा की अज़मत से ग़ाफ़िल नहीं है। लेकिन वो ख़ुदा की तारीफ़ के पुल नहीं बांधता। बरअकस वो ख़ुदा की बेदादगिरी की तरफ़ इशारा करता है।
ईरान में दस्तूर था कि इंसाफ़ चाहने वाले, काग़ज़ का जामा पहन कर हाकिम के सामने फ़रयादी करने जाते थे। ग़ालिब काग़ज़ पर बनी हुई तस्वीर को देख कर कहता है कि, क्योंकि तस्वीर काग़ज़ पर बनी है वो काग़ज़ का जामा पहने नज़र आती है। इस लिए ग़ालिब उसे फ़रयादी क़रार देता है। और कहता है कि ये तस्वीर अपने आक़ा की, जिस ने उसे तख़लीक़(तहरीर) किया है, फरियाद कर रही है। ग़ालिब सारी कायनात को ख़ुदा की लिखी हुई इबारत समझता है। और काग़ज़ पर उतारी गई तस्वीर की तरह फ़रयादी समझता है। ग़ालिब इस शेअर में ख़ुदा पर तंज़ करता हुआ नज़र आता है कि ए ख़ुदा! तू कहता है कि मैं रहमान और रहीम हूँ, तो फिर तेरी मख़लूक़ क्यों फ़रियादी नज़र आती है? 








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