MADHUSHALA

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Thursday, 28 July 2011

गुलशन की फक़त फूलों से नहीं काटों से भी ज़ीनत होती है,

गुलशन की फक़त फूलों से नहीं काटों से भी ज़ीनत होती है,
जीने के लिए इस दुनिया में गम की भी ज़रूरत होती है.

ऐ वाइज़-ए-नादां करता है तू एक क़यामत का चर्चा,
यहाँ रोज़ निगाहें मिलती हैं यहाँ रोज़ क़यामत होती है.

वो पुर्शिश-ए-गम को आए हैं कुछ कह ना सकूँ चुप रह ना सकूँ,
खामोश रहूं तो मुश्किल है कह दूं तो शिकायत होती है.

करना ही पड़ेगा ज़ब्त-ए-अलम पीने ही पड़ेंगे ये आँसू,
फरियाद-ओ-फूग़ान से ऐ नादां तौहीन-ए-मोहब्बत होती है.

जो आके रुके दामन पे ‘सबा’ वो अश्क़ नहीं है पानी है,
जो अश्क़ ना छल्के आँखों से उस अश्क़ की कीमत होती है.

1 comment:

  1. very nice I think its written by Sabaa but know him If you will tell something I shall be thankful to you thanks.

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