आषाढ़ का एक दिन सन १९५८ में प्रकाशित और नाटककार
मोहन राकेश द्वारा रचित एक हिंदी नाटक है।
[1] इसे कभी-कभी हिंदी नाटक के आधुनिक युग का प्रथम नाटक कहा जाता है।
[2] १९५९ में इसे वर्ष का सर्वश्रेष्ठ नाटक होने के लिए
संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया और कईं प्रसिद्ध निर्देशक इसे मंच पर ला चुकें हैं।
[1] १९७१ में निर्देशक
मणि कौल ने इस पर आधारित एक
फ़िल्म बनाई जिसने आगे जाकर साल की सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म का
फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार जीत लिया।
[3][4] आषाढ़ का एक दिन महाकवि
कालिदास के निजी जीवन पर केन्द्रित है, जो १०० ई॰पू॰ से ५०० ईसवी के अनुमानित काल में व्यतीत हुआ।
शीर्षक की प्रेरणा
इस नाटक का शीर्षक कालिदास की कृति
मेघदूतम् की शुरुआती पंक्तियों से लिया गया है।
[1] क्योंकि अषाढ़ का माह
उत्तर भारत में वर्षा ऋतू का आरंभिक महिना होता है, इसलिए शीर्षक का अर्थ "वर्षा ऋतू का एक दिन" भी लिया जा सकता है।
नाटककार की टिपण्णी
अपने दुसरे नाटक ("लहरों के राजहंस") की भूमिका में मोहन राकेश नें लिखा कि "मेघदूत पढ़ते हुए मुझे लगा करता था कि वह कहानी निर्वासित यक्ष की उतनी नहीं है, जितनी स्वयं अपनी आत्मा से निर्वासित उस कवि की जिसने अपनी ही एक अपराध-अनुभूति को इस परिकल्पना में ढाल दिया है।" मोहन राकेश ने कालिदास की इसी निहित अपराध-अनुभूति को "आषाढ़ का एक दिन" का आधार बनाया।
[7]
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